Long Moral Stories In Hindi । नैतिकता की हिंदी में लंबी कहानी

Pankaj Thakur
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हेलो दोस्तों आज हम Long Moral Stories in Hindi के बारे में पढ़ेंगे। यह Moral Story बहुत ही रोमांचक है और साथ ही प्रेरणादायक भी है। इनको पढ़कर आप बहुत कुछ सीख सकते हैं। यदि आप पुरानी कहानियाँ पढ़ कर बोर हो गए है तो यहाँ पर हम आपको सबसे अच्छी नई Long Moral Stories in Hindi बता रहे है। तो आए जानते है Long Story in Hindi के बारे में। 

Long Moral Stories In Hindi

Long Moral Stories In Hindi

  • दो प्यासे कौवे (Two Thirsty Crow) – Long Moral Stories In Hindi

गर्मी का दिन था। चारो तरफ तेज धुप थी। एक प्यासा कौआ आकाश में उर रहा था और पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। लेकिन उसे कहीं पानी नहीं दिखाई दिया। लगातार धुप में उड़ने के कारण वह बहुत थक गया था। गर्मी बहुत थी इसी कारण उसकी प्यास तेज हो गई। वह धीरे-धीरे धैर्य खोता जा रहा था। वह मन ही मन सोच रहा था कि उस दिन वह मर जाएगा। लेकिन वह फिर उड़ने लगा। वह अपने घर से बहुत दूर चला गया था। उसने देखा कि एक और कौआ एक पेड़ के नीचे पड़ा हुआ है। उसने पूछा क्या हुआ भाई? उदास क्यों हो? दूसरा कौआ बोला मुझे लगता है कि पानी की कमी के कारण मैं फिर से उड़ान नहीं भर पाऊंगा। मेरे पंखों में कोई ताकत नहीं बची है। मैंने पानी की तलाश में कड़ी मेहनत की। अब मै मर जायूँगा। अब मैंने सारी उम्मीदें खो दी हैं।

फिर कौआ बोला उम्मीद मत खोना मेरे दोस्त। हम निश्चित रूप से समाधान निकालेंगे। तुम अपना ख्याल रखो और देखभाल करना। मैं कहीं और पानी ढूंढ लूंगा। यह बोल कर कौआ दूर उड़ गया। जब वह थक गया तो जाकर एक घर की छत पर बैठ गया। उस एक कोने में एक बर्तन दिखाई दिया। वह पानी मिलने की उम्मीद में बर्तन के पास गया। उसने अंदर झाँक के देखा तो पानी बहुत कम था।

मटके में पानी था लेकिन वह बर्तन के नीचे था। कौआ ने पानी पीने की कोशिस की पर वो पानी नहीं पी पाया। कौआ अपनी चोंच को इतनी दूर तक डुबा नहीं पा रहा था। उसने सोचा कि अगर उसने घड़ा झुका दिया तो पानी गिर सकता है पर घड़ा टूट भी सकता है…और उसे पानी नहीं मिलेगा।

वह नहीं जानता था कि अपनी प्यास बुझाने के लिए बर्तन में अपना चोंच को कैसे पहुँचाया। वह एक विकल्प के बारे में सोचने लगा। उसने देखा कि घड़े के पास कुछ कंकड़ पड़े हैं। उसे एक विचार आया। वह अपनी चोंच से कंकड़ घड़े में डालने लगा। कौआ थकान और प्यास से परेशान था… फिर भी वह घड़े में कंकड़ गिराता रहा। कुछ देर बाद पानी का स्तर बढ़ा। कौआ अब पानी पी सकता था।

उनकी मेहनत रंग लाई। कौआ बहुत खुश हुआ। वह मन भर पानी पी लिया। पानी पीकर वह संतुष्ट हो गया। उस समय उसे अपने मित्र की याद आई जो पेड़ के नीचे पड़ा प्यास से मर रहा था। वह वापस उस पेड़ के पास गया जहाँ उसने उसे देखा था। पेड़ के नीचे पड़ा कौआ बेहोश हो गया था। कौवे ने अपनी चोंच में रखे पानी को दूसरे कौवे पर छिड़क दिया। कौवे को होश आया। उसने उसे बताया कि उसे पानी मिल गया है। वे धीरे-धीरे उड़कर उस जगह पर चले गए जहाँ घड़ा था। दूसरे कौवे ने अपनी प्यास बुझाई।

उसने कहा धन्यवाद मेरे दोस्त। आज तुमने मेरी जान बचाई। प्यास के कारण मैं दयनीय स्थिति में था। कल से मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। हम पक्षी हमेशा एक दूसरे की मदद कर सकते हैं। जरूरत के समय हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए।

कहानी का नैतिक है: हमें कठिन समय में धैर्य नहीं खोना चाहिए। हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करना चाहिए और समस्याओं का समाधान करना चाहिए।

  • डरपोक पत्थर  Long Moral Stories In Hindi


एक ज़माने की बात हैं। एक शिल्पकार मूर्ति बनाने के लिए जंगल में पत्थर ढूंढने गया। पत्थर ढूढ़ते ढूढ़ते उसको एक बहुत ही अच्छा और बरा पत्थर मिल गया। जिसको देखकर वह बहुत खुश हुआ और कहा यह मूर्ति बनाने के लिए बहुत सही है। वो उस पत्थर को लेके घर जाने लगा।

जब वह घर जा रहा था तो उसको एक और पत्थर मिला उसने उस पत्थर को भी अपने साथ ले लिया। घर जाकर उसने पत्थर को साफ़ पानी से धो दिया और अपना औजारों उठा कर उस पर कारीगरी करना शुरू कर दिया।

औजारों की चोट जब पत्थर पर परी तो वह पत्थर बोलने लगा की मुझको छोड़ दो इससे मुझे बहुत दर्द हो रहा है। अगर तुम मुझ पर चोट करोगे तो मै बिखर कर अलग हो जाऊंगा। तुम किसी और पत्थर पर मूर्ति बना लो।

पत्थर की बात सुनकर शिल्पकार को दया आ गया। उसने पत्थर को छोड़ दिया और दूसरे पत्थर को लेकर मूर्ति बनाने लगा। वह पत्थर कुछ नहीं बोला। कुछ समय में शिल्पकार ने उस पत्थर से बहुत अच्छी भगवान की मूर्ति बना दी। गांव के लोग मूर्ति बनने के बाद उसको लेने आये। गाँव वाले ने सोचा की हमें नारियल फोड़ने के लिए एक और पत्थर की जरुरत होगी। गाँव वाले वहाँ रखे पहले पत्थर को भी अपने साथ ले लिया। मूर्ति को ले जाकर उन्होंने मंदिर में सजा दिया और उसके सामने उसी पत्थर को रख दिया।

अब जब भी कोई व्यक्ति मंदिर में भगवान का दर्शन करने आता तो भगवन के मूर्ति को फूलों से पूजा करता, दूध से स्नान कराता और उस बगल वाले पत्थर पर नारियल फोड़ता था। जब लोग उस पत्थर पर नारियल फोड़ते तो वो पत्थर बहुत परेशान होता। उसको बहुत दर्द होता और वह चिल्लाता लेकिन कोई उसकी सुनने वाला नहीं था। उस पत्थर ने मूर्ति बने पत्थर से बात की और कहा की तुम तो बड़े मजे से हो लोग तो तुम्हारी पूजा करते है। तुमको दूध से स्नान कराते है और लड्डुओं का प्रसाद भी चढ़ाते है।

लेकिन मेरी तो किस्मत ही ख़राब है मुझ पर लोग नारियल फोड़ कर जाते है। इस पर मूर्ति बने पत्थर ने कहा की जब शिल्पकार तुम पर कारीगरी कर रहा था यदि तुम उस समय उसको नहीं रोकते तो आज मेरी जगह तुम होते।

लेकिन तुमने आसान रास्ता चुना इसलिए अभी तुम दुःख उठा रहे हो। उस पत्थर को मूर्ति बने पत्थर की बात समझ आ गयी थी। उसने कहा की अब से मै भी कोई शिकायत नहीं करूँगा। इसके बाद लोग आकर उस पर नारियल फोड़ते। नारियल टूटने से उस पर भी नारियल का पानी गिरता और अब लोग मूर्ति को प्रसाद का भोग लगाकर उस पत्थर पर रखने लगे।

कहानी का नैतिक है: हमें कभी भी कठिन परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए।

परमात्मा अच्छा ही करता है- Moral Stories in Hindi 

एक था राजा। उस राजा का भगवान् पर से भरोसा उठने लगा। राजा का एक मंत्री था। उस मंत्री का भगवान् पर इतना अटूट भरोसा था कि जब भी कोई अच्छी या बुरी बात होती मंत्री यही कहता “भगवान् जो करते है, अच्छा ही करते है।” यों समझिए कि यह वाक्य मंत्री के मुँह पे हमेशा रहता था।

एक दिन राजा की उंगली कट गई। ऊँगली में पट्टी बाँधी गई, दवा लगाई गई, पर राजा को बहुत दर्द हो रहा था। दर्द के मारे उसका जान निकला जा रहा था। सारे मंत्री राजा का हालचाल पूछने के लिए गए। सबको राजा की उंगली कटने का दुःख हुआ। सबने अफसोस जाहिर किया। लेकिन उस मंत्री ने यही कहा-“भगवान् जो करते है, अच्छा ही करते है।”

राजा की गुस्सा आ गया पर वह गुस्सा पीकर ही रह गया। राजा ने मंत्री को मजा चखाने की ठान ली। कुछ दिन बीते। एक दिन राजा ने जंगल में शिकार खेलने की योजना बनाई। उस मंत्री को भी साथ चलने को कहा। दोनों घोड़ों पर सवार हुए और जंगल की ओर चल दिए।

रास्ते में एक कुआं मिला। दोनों बहुत प्यासे थे। दोनों ने झाँककर देखा। कुआं सूखा था। राजा ने मौका पाकर मंत्री को सूखे कुएँ में ढकेल दिया और फिर पूछा-“कहो मंत्री जी कैसी रही?”

मंत्री ने कुएँ के अन्दर से बोला-“भगवान् जो करते है, अच्छा ही करते है।” राजा बोला तो अब यहीं कुएँ में मर और अपने भगवान् की माला जप, मैं तो चला।

यह कहकर राजा घोड़े पर सवार होकर राजमहल की ओर लौटने लगा। अभी कुछ ही दूर आगे चला होगा कि उसे तीर-भालों से लैस लुखार आदिवासियों ने घेर कर रस्सियों से बाँध डाला। मोटे-तगड़े राजा को पाकर सब नाचने गाने लगे। असल में वे अपनी वन देवी के आगे बलि चढ़ाने के लिए एक तगड़े आदमी को खोज रहे थे। उन्हें तो गहनों वस्त्रों से सजा राजा मिल गया।

वे सब राजा को बलि की जगह पर ल गए। पुरोहित ने राजा के शरीर को बारीकी से परखा। राजा डर के मारे पसीने-पसीने होकर काँप रहा था। जल्लाद तलवार लेकर उस राजा के सामने खड़े हो गये थे।

पुरोहित की नजर उस राजा की कटी हुई उंगली पर गयी और वह चिल्लाया-“वन देवी को इस आदमी की बलि नहीं दी जा सकती। इसकी उंगली कटी हुई है। देवी को खंडित शरीर की बलि नहीं चाहिए ।”

उन आदिवासियों ने राजा को छोड़ दिया। राजा ने भगवान् को याद किया और धन्यवाद किया और मन-ही-मन सोचा-“मंत्री ठीक कहता था। मैंने उस बेकसूर को कुएं में धकेला।”

राजा घोड़े पर सवार होकर कुएं के पास पहुँचा। अपनी पगड़ी की रस्सी बनाई और कुएँ में लटकाकर मंत्री को बाहर निकाल लिया। अपनी गलती के लिए माफी माँगी।

लेकिन उसने यह फिर भी पूछा-“मेरी उंगली कटी हुई थी, इसलिए मुझे बचाकर भगवान् ने अच्छा किया। मगर तुम्हें अंधे कुएं में फेंकने की मुझे जो भगवान् ने सजा दी, उसमें क्या अच्छाई थी?”

मंत्री खुश होकर बोला-“महाराज! मैं आपके साथ होता तो मेरी उस वन देवी को बलि चढ़ गई होती। आप तो उंगली कट जाने से बच गए, लेकिन मैं कैसे बचता? “भगवान् जो करता है अच्छा ही करता है।”

कहानी का नैतिक है: भगवान् न्याय करता है। अन्याय नहीं करता। वह जो भी करता है, अच्छा ही करता है।

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